मत समझो इन्हे कुछ स्याही के छीठे,
ये वो लम्हे थे, जो मुझ पर बीते।
हा, कुछ लोग गुजारे के लिए लिखते होंगे।
पर मैं तो लिख के गुज़ार रही हूं,
चन्द शब्दों से रोज़ ज़िन्दगी उधार रही हूं।
इसलिए कहती हूं,
मत समझो इन्हे कुछ स्याही के छीठे ,
ये वो लम्हे थे , जो मुझ पर बीते।।
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