मैं बड़ी तो हो गई हूं पर दिल अब कुछ छोटा सा लगता है।
वो आंखो की शरारत सूख गई है,
हसीं जैसे लभो से रूठ गई है।
अपने सपने तो पूरे हो रहे है,
पर अपनों से मिलने के नहीं।
पहले मै अपनी कॉलोनी की उन तंग गलियों में बेतःशा दौड़ लगाता था, नंगे पांव , मैले से कपड़े लिए । ना कोई मकसद हुआ करता था ना थी कोई वक़्त की पाबंदी।
अब तो मानो घड़ी के इन कांटो की ग़ुलाम बन गई हूं।
मै अंजान थी कि नए जूते और चमकते सूट की कीमत थी ये।
कीमत तो अदा करना जानती हूं मै,
पर कुछ चीजो कि कीमत ही भूल गई हूं।
मै बड़ी तो हो गई हूं पर………
Bhut badiya 👌👌👌
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Thank you ! 🙂
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Nice
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खूबसूरत।👌👌
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लाजवाब
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Thankyou 🙂
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